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पौराणिक कहानियां


कहानी ययाति पुत्री माधवी की – नारी के यौन शोषण की एक पौराणिक कथा(Part-2)


अपने मित्र गरुड़ की मर्मस्पर्शिनी वाणी सुनकर राजा ययाति प्रसन्न हुए। किन्तु संयोगात् उस समय उनकी स्थिति वैसी नहीं थी, जैसी कि गरुड़ समझते थे। अनेक राजसूय और अश्वमेध यज्ञों में उन्होंने अपना सम्पूर्ण कोष रिक्त कर दिया था। कुछ क्षण गम्भीर सोच-विचार करने के अनन्तर उन्होंने अपनी त्रैलोक्य-सुन्दरी कन्या माधवी को समर्पित करते हुए गालव से कहा,  ऋषिकुमार, मेरी यह कन्या दिव्य गुणों से अलंकृत है। दैवी वरदान के अनुसार इसके द्वारा हमारे देश में चार महान राजवंशों की प्रतिष्ठा होगी। इसे संग लेकर आप पृथ्वी के अन्य राजाओं के पास जाइए। ऐसी सर्वगुणोपेत एवं सुन्दरी के शुल्क के रूप में राजा लोग अपना राज्य तक दे सकते हैं, फिर आठ सौ श्यामकर्ण अश्वों की तो बात ही क्या है! किन्तु मेरी यह भी प्रार्थना है कि आठ सौ अश्वों की प्राप्ति के बाद आप मेरी कन्या मुझे वापस दे देंगे। 

ययातिपुत्री माधवी को संग लेकर गरुड़ और गालव सर्वप्रथम अयोध्या के राजा हर्यश्व के पास पहुँचे, जो उस समय न केवल अपनी दानशीलता, शूरता, परदुःख-कातरता तथा समृद्धि के कारण धरती भर में प्रसिद्ध थे, वरन् संसार भर से चुने हुए अश्वों को रखने के कारण भी विख्यात थे।

अयोध्यापति ने उनके आगमन का कारण पूछा। ऋषिकुमार गालव ने राजा हर्यश्व से माधवी के कुल, शील एवं गुणों की चर्चा करते हुए जब अपना मन्तव्य प्रकट किया, तो राजा हर्यश्व की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। किन्तु विडम्बना यह थी कि उनके पास वैसे श्यामकर्ण अश्वों की संख्या केवल दो सौ थी। हर्यश्व ने अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए गालव और गरुड़ को यह सुझाव दिया,  आपको मेरे ही समान अन्य राजाओं से भी माधवी के शुल्क के रूप में वैसे श्यामकर्ण अश्वों की प्राप्ति का उपाय करना होगा। मैं अपने दो सौ अश्वों को देकर माध�

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